मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

इसमें कोई शक नहीं कि दो बाबाओं का मेरे ऊपर बहुत ज़्यादा असर पड़ा है नागा बाबा और लोचन बाबा। इन दोनों के साथ मेरा लम्बा सानिध्य रहा और इन दोनों ने मेरे कवि-व्यक्तित्व को नया आयाम दिया। इनका सादा जीवन, जन के साथ, जन के पास बने रहने की इनकी जीवन शैली ने ही मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया। बाबा की जिस कविता पर मैं पहले दिन से ही मोहित हो गया था, वह है ’अकाल और उसके बाद’। यह कविता मैं आज भी अपने सभी रूसी छात्रों को पढ़ाता हूँ। और फिर यह कविता उन्हें भी याद हो जाती है। इस कविता में जो सादगी है, उस पर मैं फ़िदा हूँ।
आइए, उस कविता को याद करें।

अकाल और उसके बाद
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कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।


दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।

रचनाकाल : 1952

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