सोमवार, 28 सितंबर 2015
नाहक ही डर गई, हुज़ूर / नागार्जुन
भुक्खड़ के हाथों में यह बन्दूक कहाँ से आई
एस० डी० ओ० की गुड़िया बीबी सपने में घिघियाई
बच्चे जागे, नौकर जागा, आया आई पास
साहेब थे बाहर, घर में बीमार पड़ी थी सास
नौकर ने समझाया, नाहक ही दर गई हुज़ूर !
वह अकाल वाला थाना, पड़ता है काफ़ी दूर ! 
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हुज़ूर
नया तरीका / नागार्जुन
 दो  हज़ार  मन  गेहूँ  आया  दस  गाँवों के नाम
राधे  चक्कर  लगा काटने, सुबह  हो  गई शाम
सौदा  पटा  बडी  मुश्किल  से, पिघले  नेताराम
पूजा  पाकर  साध  गये  चुप्पी  हाकिम-हुक्काम
भारत-सेवक  जी  को  था  अपनी सेवा से काम
खुला  चोर-बाज़ार,  बढ़ा  चोकर-चूनी  का दाम
भीतर  झुरा  गई  ठठरी, बाहर  झुलसी  चाम
भूखी  जनता  की  ख़ातिर  आज़ादी  हुई  हराम
नया  तरीका   अपनाया  है   राधे  ने  इस साल
बैलों  वाले   पोस्टर  साटे,  चमक  उठी  दीवाल
नीचे  से लेकर ऊपर  तक  समझ  गया सब हाल
सरकारी  गल्ला    चुपके   से  भेज  रहा  नेपाल
अन्दर   टंगे   पडे   हैं  गांधी-तिलक-जवाहरलाल
चिकना तन, चिकना पहनावा, चिकने-चिकने गाल
चिकनी किस्मत, चिकना पेशा, मार  रहा है  माल
नया  तरीका  अपनाया  है   राधे  ने  इस   साल
(१९५८)
बाकी बच गया अण्डा / नागार्जुन
 पाँच  पूत   भारतमाता  के, दुश्मन था खूँखार
गोली  खाकर  एक मर गया, बाक़ी रह गए चार
चार   पूत  भारतमाता  के, चारों  चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन
तीन पूत  भारतमाता  के, लड़ने लग  गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाक़ी बच गए दो
दो   बेटे  भारतमाता  के,  छोड़  पुरानी  टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक
एक  पूत  भारतमाता का, कन्धे  पर  है  झण्डा
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा
रचनाकाल : 1950
शासन की बन्दूक / नागार्जुन
 खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक 
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बन्दूक 
उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक 
जिसमें कानी हो गई शासन की बन्दूक 
बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बन्दूक 
सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक 
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बन्दूक 
जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बन्दूक 
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